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कार्तिक मेले में झूले लगाने वालों की आपबीती:कोरोना काल में दस फीसदी ब्याज पर रुपए लेकर चलाया घर
कार्तिक मेले की शुरुआत गुरुवार से हो गई है। नगर निगम ने औपचारिक शुभारंभ किया तो सबसे पहले मेले में आने वाले व्यापारियों में झूला संचालक थे। कोरोना के कारण दो साल उन्हें मेले से दूर रहना पड़ा। शुक्रवार को शिप्रा स्नान के लिए आए श्रद्धालुओं ने झूला संचालकों के चेहरे खिला दिए। भास्कर ने झूला संचालकों से कोरोना काल से जुड़ी चर्चा की तो वे रुंआसे हो गए। आइए उन्हीं के शब्दों में जानते हैं, उन्होंने दो साल कैसे गुजारे।
हर महीने लेते थे कर्ज, ब्याज दर 5 से 10 फीसदी चुका रहे
एक दशक से ज्यादा वक्त से अलग अलग स्थानों पर झूले लगा रहे हैं। अचानक कोरोना आने से सबकुछ बदल गया। घर खर्च चलाने के लिए 10 फीसदी ब्याज पर रुपए लिए। निगम ने दो बार खुले मैदान में रखे झूले भी हटा दिए। काम नहीं मिला, उल्टा कर्ज चढ़ गया।
खेमचंद जैन
एक जगह पड़े रहे, चक्रों में घास उग आई, पुर्जों पर जंग लग गई
लॉकडाउन की खबर आते ही हैरान हो गए। यह इतना लंबा खींचेगा, सोचा भी नहीं था। झूलों को देखने, उनके पुर्जों में तेल देने का भी वक्त नहीं मिला। एक ही स्थान पर रखे रहने से घास उग आई। पुर्जों में जंग लग गई है। शामगढ़ आलोट के साथ सामाजिक न्याय परिसर में झूले रखे हैं।
असलम खान
कोरोना काल में वेल्डिंग कर परिवार के 6 लोगों का पेट भरा
कार्तिक मेला देश का सबसे पुराना मेला है। साल में सात-आठ स्थानों पर झूले लगाने से परिवार का गुजर बसर आसानी से हो रहा था। दो साल से मेले नहीं लगे तो झूले भी काम नहीं आए। वेल्डिंग कर छह लोगों का पेट भरा। शुरुआत में बड़ा अजीब लगा, लेकिन बाद में आदत हो गई।
नईमुद्दीन
ठेकेदार के यहां बेलदारी की तब घर का गुजारा हो सका
कार्तिक मेले से अच्छी खासी कमाई हो जाती थी। कई बार तो मेला खत्म होने के एक सप्ताह बाद भी झूले लगे रहते थे। झूलों के सहारे ही खर्च की पूर्ति होती थी। दो साल तक कहीं मेले नहीं लगे तो झूले नहीं चल सके। एक ठेकेदार के यहां बेलदारी करना पड़ी। तब जाकर गुजारा हो सका।
पंकज चौहान
दो हजार को रोजगार देता है कार्तिक मेला
- 50 झूले, इनमें 18 बड़े, 32 छोटे, 300 कर्मचारी
- 400 दुकानें मीना बाजार, इनमें 800 कर्मचारी
- 40 दुकानें खान-पान की, इनमें 200 कर्मचारी
- 50 दुकानें सड़क पर पल्ली पर व्यवसाय करने वाले